राजनीतिक संवाददाता द्वारा
रांची. झारखंड के मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन पर सदस्यता रद्द होने का खतरा समय के साथ बढ़ता ही जा रहा है. ये खतरा चुनाव आयोग के द्वारा जारी नोटिस के बाद और बढ़ गया है. रांची के अनगड़ा में पत्थर खदान लीज मामले में मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन पर लोक प्रतिनिधित्व अधिनियम 1951 की धारा 9 A के तहत सदस्यता रद्द होने की संभावना है. अनगड़ा खदान लीज का खुलासा पूर्व मुख्यमंत्री रघुवर दास ने किया था. अब ऐसे में सवाल ये उठने लगा है कि अगर हेमंत सोरेन की सदस्यता जाती है , तो क्या राज्य में हेमंत सोरेन की अगुवाई वाली गठबंधन सरकार भी चली जायेगी ?
क्या सरकार बचाये रखने की अंक गणित में हेमंत सोरेन पिछड़ जाएंगे, क्या सरकार बचाये रखने को लेकर बहुमत का आंकड़ा गठबंधन वाली सरकार के पास नहीं है? इन सभी सवालों के जवाब अगर ढूंढे तो हर जवाब में अगर और मगर की राजनीति भी छ्पीि हुई है. मसलन एक नजर में देखें तो राज्य में गठबंधन वाली सरकार के पास बहुमत के पर्याप्त आकड़ें हैं. इसका आंकलन आप आसानी से कर सकते हैं.
राज्य में जेएमएम विधायकों की संख्या 30 है जबकि उसके सहयोगी दल कांग्रेस के विधायकों की संख्या 17 है. इस संख्या में विधायक प्रदीप यादव का नाम शामिल है जबकि हाल ही अपनी सदस्यता गंवाने वाले विधायक बंधु तिर्की का नाम शामिल नहीं है. वहीं सरकार में शामिल राजद विधायक की संख्या एक मात्र है .इतना ही नहीं माले विधायक विनोद सिंह का समर्थन भी इस वक्त हेमंत सोरेन सरकार के साथ है, यानी बहुमत के लिये जरूरी 41 के मुकाबले गठबंधन वाली सरकार के पास 49 विधायकों का आंकड़ा साफ – साफ दिखता है.
इसके उलट बीजेपी के पास बाबूलाल मरांडी को जोड़ते हुए 26 विधायक हैं जबकि उसकी सहयोगी आजसू के पास 2 विधायक हैं. सदन में 2 निर्दलीय विधायक और 1 NCP के विधायक भी हैं. इन सभी को मिला दें तो आंकड़ा 31 तक पहुंचता है लेकिन यही से शुरू होती है असल राजनीति. हेमंत सोरेन की सदस्यता जाने के साथ सबसे पहले गठबंधन के अंदर नये नेता का चुनाव की अहम भूमिका होगी. उस नेता के नाम पर सबकी सहमति भी सबसे बड़ी चुनौती होगी. इस दौरान जेएमएम के नाराज विधायक लोबिन हेम्ब्रम और विधायक सीता सोरेन के रुख पर भी सबकी नजर रहेगी.
गठबंधन की परीक्षा यही खत्म नहीं होती कांग्रेस विधायकों की एक जुटता भी इस आंकड़े को मजबूत बनाने में अहम भूमिका अदा करने वाले हैं. समय-समय पर बागी रुख अपनाने वाले कांग्रेस विधायकों के टूटने की भी संभावना जताई जा रही है. अगर ये सब कुछ ठीक भी रहा तो मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन की सदस्यता जाने के बाद राजभवन की भूमिका बढ़ जाएगी.
बहरहाल, मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन और उनके भाई बसंत सोरेन पर खनन पट्टा लेने और कंपनी में साझेदारी के मामले में कार्रवाई की घड़ी बहुत नजदीक आती दिख रही है। भारतीय निर्वाचन आयोग से मंतव्य मिलने पर राज्यपाल रमेश बैस की ओर से कोई फैसला लिया जाएगा। भाजपा जहां इस मामले को लेकर बेहद आक्रामक है, वहीं झामुमो ने आने वाले दिनों में बीजेपी के कई बड़े नेताओं का भांडा फोड़ने की पेशकश की है।
राज्य में राष्ट्रपति शासन लगाए जाने को लेकर पहल जरूर होगी और अगर राष्ट्रपति शासन की अनुशंसा नये नेता की अगुवाई वाली सरकार से पहले कर दी जाती है तो गठबंधन वाली सरकार सत्ता दूर हो जाएगी. हालांकि ये सब कुछ 10 मई तक मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन के द्वारा चुनाव आयोग को जवाब भेजने और चुनाव आयोग के द्वारा अगला कदम उठाए जाने के बाद तय हो पायेगा.